बेटियों की हिफाजत के लिए हर व्यक्ति को आगे आना
होगासुवासरा (निप्र) कलम मेरी पहचान
पंकज बैरागी माता- पिता हर समय बेटी के साथ नहीं हो सकते, समाज को भी देखभाल की जिम्मेदारी उठाना होगी घर से बाहर निकलने पर हम कई बार कम आयु के लड़के- लड़कियों को सूनी गलियों, सुनसान जगहों पर छुपकर बात करते हुए देखते है,किंतु हमें उनसे क्या लेना- देना है? यह सोचकर हम उनकी अनदेखी कर आगे बढ़ जाते है। समाज की यही अनदेखी बेटियों और महिलाओं के लिए असुरक्षित वातावरण का निर्माण करती है। हर जगह बेटियों के माता- पिता मौजूद नहीं हो सकते,समाज को भी अपनी जबाब देही समझनी होगी। यह बात परामर्शदात्री टीना सोनी ने कही। उन्होंने शक्ति अभिनंदन अभियान के समापन कार्यक्रम के दौरान कहा कि जब भी कहीं किशोर- किशोरियां असामान्य स्थिति में नजर आएं तो उन्हें रोकने- टोकने की जवाबदेही हर व्यक्ति की हो जाती है। बेटियों के लिए अनुकूल सामाजिक वातावरण उपलब्ध कराना हर नागरिक की जिम्मेदारी है। सेफ सिटी (सुरक्षित वातावरण) के लिए हर व्यक्ति को अपनी भूमिका को समझना होगा और उसे निभाना होगा। अगर आज तेरी है सोचकर हम रोक- टोक नहीं करेंगे, तो कल हमारी बारी भी आ जाएगी। तब हमारे सामने सामाजिक माहौल को कोसने और पछताने के अलावा कोई दूसरा विकल्प मौजूद नहीं होगा।-
जरूरत पड़ने पर पुलिस की मदद लें आपको लगे कि आपके समझाने का असर नहीं होगा या आप अकेले है,तो स्थानीय लोगों की मदद लेकर रोकें। अगर यह भी संभव न हो तो 100 नंबर पर पुलिस को सूचित कर मदद ले सकते है। यदि कोई ऐसा स्थान है जहां अमूमन ऐसे दृश्य दिखते हों तो पुलिस या चाइल्ड लाइन नंबर 1098 पर सूचना दी जा सकती है।-
प्रेम के भटकाव में फंसता बचपन पाश्चात्य संस्कृति के अंधानुकरण एवं सांस्कृतिक मूल्यों के पतन के कारण किशोर- किशोरियां वासना पूर्ति के खेल को प्रेम समझने की भूल कर जाते है,जिसका गंभीर खामियाजा परिवार एवं समाज को झेलना पड़ता है। सोशल मीडिया और टीवी चैनलों परोसी जा रही अश्लीलता और फूहड़ता के चलते बच्चों में संस्कारों का पतन होता जा रहा है। किशोरावस्था की दहलीज पर कदम रखते किशोर- किशोरियां वासना पूर्ति के खेल को प्रेम समझकर बहक जाते है। रोकटोक करने पर उन्हें अपने ही माता- पिता दुश्मन दिखाई देने लगते है।-
हर तीसरे दिन बच्चों को समझाते है राष्ट्रीय किशोर स्वास्थ्य कार्यक्रम की परामर्शदाता टीना सोनी ने कहा कि मै हर मंगलवार और शुक्रवार को स्कूल- कॉलेज या छात्रावास में जाकर किशोर- किशोरियों को ऐसी एकांतिक चर्चा के दुष्परिणामों से परिचित कराती हूँ। जब उन्हें परिवारीजनों को पता चलने के बाद की स्थिति का एहसास कराया जाता है, तब वे भी अपनी भूल स्वीकारते है। व्यक्तिगत काउंसलिंग के दौरान कुछ किशोर किशोरियां अपनी भूल स्वीकार करके भविष्य में गलती न करने का भरोसा देते है। लुका छुपी के परिणामों से अनजान मासूम प्रेमियों को समझाने के लिए समाज के हर व्यक्ति को आगे आना ही होगा।