स्वतंत्रता संग्राम सेनानी वीर मनीराम अहिरवार गुमनाम के अंधेरे में आजादी के अमृत महोत्सव में उजागर होने पर सम्मान देने की उठ रही मांग
(लेखक : मूलचन्द मेधोनिया शहीद पौता व उत्तराधिकारी शहीद परिवार)
(कलम मेरी पहचान) मध्यप्रदेश के स्वतंत्रता संग्राम आंदोलन भारत में सन 1942 में अंग्रेजों भारत छोडो़ महात्मा गॉंधी जी के नेतृत्व में देश में चलाया जा रहा था। जो मध्यप्रदेश में अभियान के तहत चल रहा था। जबलपुर संभाग एवं बुन्देलखण्ड में गोंड़ राजा, रजवाड़ों का साम्राज्य था। जिन पर हुकूमत जमाने और लूटपाट करने अंग्रेजों ने जबलपुर को अपनी छावनी बनाई थी। वहां से गोंड राजाओं के 52 किलों पर अंग्रेजों की बुरी नजर थी।
सन 1858 में जबलपुर के गोंड राजा शंकर शाह जी एवं रघुनाथ शाह जी (पिता/पुत्र) को पहले ही अंग्रेजों ने तोप के सामने बांधकर उड़ा दिया था। अब वे छल, कपट की कूटनीति से गोंडवाना साम्राज्य को नष्ट करना चाहते थे। जिला नरसिंहपुर के चौगान और चीचली राजा के किले उन दिनों सूने थे। चीचली राजमहल के वृद्ध राजा श्री विजय बहादुर शाह जी के निधन हो जाने उपरांत उनके पुत्र कुंवर शंकर प्रताप सिंह थे, जो कि बहुत छोटे थे राजमहल की सुरक्षा की व्यवस्था वीर मनीराम अहिरवार जी देखते थे ।
चीचली नरेश को राजकीय कार्य की शिक्षा ग्रहण करने हेतु बाहर जाना पड़ा था। गोंड राजमहल में मनीराम अहिरवार जी के पूर्वजों से ही महल की देखभाल और सुरक्षा व्यवस्था करते चले आ रहें थे। मनीराम अहिरवार जी के पूर्वजों को गोंड राजा ही अपने साथ लेकर आये थे और उन्हें चीचली में बसाया। जो कि मेधोनिया वंश गौत्र के रूप में ही चीचली के आसपास के अलावा कहीं और नही मिलते है। चूंकि यह वंश वीर बहादुर व स्वाभिमान के साथ जीने वाला परिवार है। जिनकी वफादारी के कारण ही राजमहल के आंतरिक व बाहरी सेवा सुरक्षा की सेवा वीर मनीराम जी संभालते थे। अंग्रेजों ने 23 अगस्त 1942 में चीचली राजमहल सूना होने की जानकारी पाकर चढ़ाई कर दी। चीचली राजमहल राजा विहीन था। अत: अंग्रेजों ने मौका पाकर कब्जा करने के उद्देश्य से सैनिकों का दल आ गया। जिन्हें राजमहल के पास न आने देने पर वीर मनीराम अहिरवार ने अंग्रेजों से बहादुरी पूर्वक युद्ध किया। अंग्रेजी सैनिकों को घायल कर और लहूलुहान कर दिया, मनीराम और अंग्रेजों के बीच में भीषण युद्ध पूरे दिन चलता रहा। गांव में खबर पहुंचते ही स्वतंत्रता सेनानी युवा में मंसाराम जसाटी अपने युवाओं के साथ मनीराम का सहयोग करने आये। मनीराम सीना तान अपने अंग वस्त्र फेंक कर बहुत ही निडरता से अंग्रेजों की गोलियों से सामना कर रहे थे। जबावी पत्थरों के निशाना लगाने के कलाबाजी से वीर मनीराम ने अंग्रेजों सैनिकों के सिर फोड़े अंग्रेजों द्वारा चली गोली मनीराम को न लग वह मंसाराम जसाटी जी को लगीं और वह घटना पर ही शहीद हो गयें। अपने साथी मंसाराम जसाटी जी की वीरोचित शहादत देखकर मनीराम कोर्धित होकर तेजी से अंग्रेजों पर पत्थर मारने लगे। अंग्रेजों ने पुनः मनीराम को लक्ष्य कर गोली चलाई, जिसे मनीराम जी ने निपुणता से सामना करते रहे। सभी फायरिंग से बचते हुए युद्ध करते रहे इन्हीं गोलीबारी में से एक गोली वीरांगना गौरादेवी कतिया को लगीं और वह भी शहीद हो गई । मनीराम जी ने दो लोगों की शहादत देख सैनिकों को गांव से खदेड़ दिया। मनीराम अहिरवार ने अंग्रेजों पर विजय प्राप्त की और अपने प्राणों की बाजी लगाकर गोंड राजमहल की सुरक्षा कर सम्पूर्ण अनुसूचित जाति जनजाति को गौरवान्वित किया। अंग्रेजी़ सेना भाग जाने के बाद 24 अगस्त 1942 को अंग्रेजी सेना के अफसर सैनिकों को लेकर गांव फिर से आये। मनीराम जी की तलाश के बहाने कुछ लोगों को गिरफ्तार किया गया। मनीराम जी को जिन्दा गिरफ्तार करने की योजना बनाई। उन्हें छल, कपट व धोका से चीचली राजा लौट आये है। मनीराम को धन, जमीन, जायदाद देकर ईनाम दे रहे है। इस तरह की हवा फैलाकर मनीराम जी को गुप्त तरीके से पकड़ा गया और अपनी गुप्त जेलखाना ले जाकर शर्त दी गई कि तुम गोंड राजमहल की जानकारी दो, तुम्हारी समाज व आदिवासी समाज के नये युवाओं को हमारी सेना में भर्ती कराओं। जो हमारे सामान बोझा ढो़ने का काम करेंगे। अंग्रेजों ने लालच दिया कि तुम्हें उस सेना का सरदार बनायेंगे। अंग्रेजों की कोई भी बात न मानने गोंड राजमहल की जानकारी न देने पर उन पर कोढ़े मारे गये। जेल में दिन रात कठोर यातनाएं देकर उन्हें जिन्दा ही, दफन कर दिया। वीर मनीराम जी ने गुलामी व बेगारी करते और समाज से न करने देने के खातिर विरोध करते हुए समाज व भारत भूमि के लिए प्राणों की आहूति देकर न्यौछावर हो गयें। जिनकी कुर्बानी को आज तक की सरकार के द्वारा अनदेखा कर उन्हें सम्मान से वंचित रखा गया यह बहुत ही दुर्भाग्य की बात है। देश का आजादी अमृत महोत्सव 75 वां मनाया गया। भारत की सरकार ने भूले बिसरे सेनानी, शहीदों की जानकारी देश के नागरिकों के माध्यम से चाही ग गई। नरसिंहपुर निवासी के अमर महान क्रांतिकारी शहीद वीर मनीराम अहिरवार जी का नाम साहित्यकार, इतिहासकार, पत्रकारों के माध्यम से आकर और वीर मनीराम जी के पौता जो कि अपने पिता स्व. श्री गरीबदास मेधोनिया जी की तरह अपने दादाजी के सम्मान की आवाज उठाते हुए 50 वर्ष बीत जाने के बाद अभी भी सरकार से आशा लगा कर गुहार कर रहे है कि भारत के माननीय प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी जी की भावनाओं के अनुरूप एक अनुसूचित जाति के महान स्वतंत्रता संग्राम सेनानी वीर मनीराम अहिरवार जी को भी राष्ट्रीय सम्मान देकर उनकी जन्म भूमि पर शहीद की मूर्ति, स्मारक एवं अनुसूचित जाति प्ररेणा गौरव बहुमंजिला इमारत बना कर अभी तक जो भी देश की आजादी में हुये शहीद परिवारों को जो सुविधाएं दी जाती रही है। वह आजादी से अभी तक वंचित परिवार को देकर राष्ट्र हित सर्व जन हित का महान कार्य सरकार द्वारा किया जाये।